Friday 5 March 2010

हिंदी ब्लॉगर्स, भी ले सकते हैं प्रेरणा, इन मराठी बंधुओं से

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Tuesday, March 2, 2010
हिंदी ब्लॉगर्स, भी ले सकते हैं प्रेरणा, इन मराठी बंधुओं से


आज मॉर्निंग वाक पर मेरी सहेली ने २८ फरवरी के हिन्दुस्तान टाईम्स में छपे एक आलेख का जिक्र किया.मेरे अनुरोध पर उसने वह अखबार मुझे भेज दिया.इसमें मराठी के ब्लॉगर्स का जिक्र है कि कैसे जनवरी की एक दोपहर करीब ६० मराठी ब्लॉगर्स. पुणे के 'पी.एल.देशपांडे' उद्यान में एकत्रित हुए और उन्होंने ब्लोग्स पर उपलब्ध मराठी साहित्य पर विचार विमर्श किया.

उस दिन सर्वसम्मति से उनलोगों ने All India Marathi Literary Meet का एक प्रस्ताव पास किया.जिसकी बैठक २६ से २८ मार्च को पुणे में होगी.जिसमे ब्लॉग को मराठी साहित्य का एक माध्यम स्वीकार करने की मान्यता दिलाने पर विचार किया जायेगा.

इस समाचार से दुनिया भर में फैले मराठी के ब्लोग्गर्स बहुत हर्षित हुए.देश विदेश से सन्देश आने लगे और वे बेसब्री से उस ब्लोगर मिलन की प्रतीक्षा करने लगे. जिसे नाम दिया गया है ,'भुजपत्र ते वेबपेज प्रवास शब्दांचा' (शब्दों की यात्रा,भोजपत्र से वेबपेज तक" )

इस प्रोग्राम के पीछे यह मंशा निहित थी की सदियों से मराठी साहित्य विकास की यात्रा पर मनन किया जाए.
इस प्रोग्राम की संचालक 'किरण ठाकुर' ने बताया कि ऐसे कार्यक्रम का उद्देश्य ब्लॉग पर लिखे जा रहें मराठी साहित्य को मान्यता दिलवाना है.

१० साल के अपने ब्लॉगकाल में मराठी ब्लोग्स ने कुछ बहुत ही सुदृढ़,गंभीर अभिव्यक्ति का मार्ग प्रशस्त किया है.

प्रख्यात मराठी लेखक, 'मुकुंद टकसाले ' ने कहा ,"आज कल की पीढ़ी ब्लॉग पर जो साहित्य रच रही है,मेरी पीढ़ी उस तरह का साहित्य शायद कभी नहीं लिख सकती थी." उन्होंने कहा कि "ऐसा नहीं है कि सारे ब्लॉग , उच्च कोटि के हैं और उनपर उच्च कोटि का साहित्य ही उपलब्ध है..पर यह औसत दर्जे की रचना हर विधा में देखने को मिलती है.लेकिन समग्र रूप में यह बहुत ही उत्साहवर्धक है."

कुछ लेखक जिनका ब्लॉग भी है,नेट पर लिखना ज्यादा पसंद करते हैं क्यूंकि इस पर त्वरित प्रतिक्रिया मिलती है.'सुनील दोइफोडे 'जो राष्ट्रीय सुरक्षा, अनुसंधान एवं विकास संस्थान में वैज्ञानिक हैं.उन्होंने बताया कि २ उपन्यास लिखने के बाद वे अब सिर्फ अपने ब्लॉग पर ही लिखना पसंद करते हैं क्यूंकि उनके ब्लॉग को करीब ४००० हिट्स रोज मिलते हैं और प्रतिक्रियाएँ भी उतनी ही बहुतायत से मिलती हैं जो प्रिंट मीडिया पर कभी भी संभव नहीं था.

एक दूसरे लेखक 'अनिल अवाछात' जो अपने ब्लॉग पर लिखना पसंद करते हैं उन्होंने कहा "यह एक बहुत ही शुभ संकेत है .कि आज हर क्षेत्र में नयी पीढ़ी इतना पढ़ रही है और लिखने की कोशिश भी कर रही है.और मुझे पूरी आशा है कि आने वाले वर्षों में ये ब्लॉग बहुत ही उच्च कोटि का साहित्य प्रदान करने में सक्षम होंगे.

ये सारी बातें हिंदी ब्लॉग जगत के लिए भी सच हैं.फिर क्यूँ नहीं आपस की सारी खींचतान,सारे मन मुटाव मिटा सारे ब्लोगर्स संगठित होकर इसके विकास के लिए प्रयासरत होते हैं.हमें प्रिंट मीडिया से अनुमोदन क्यूँ चाहिए?प्रिंट मीडिया को भी चाहिए कि इस नए माध्यम को वह दोयम दर्जे का ना समझे और जिम्मेवारी भरा रवैया अपनाए,इसे देखने का.वैसे हम खुद को ही इतना शक्तिशाली बना लेँ कि यह अभिव्यक्ति का एक नया माध्यम बन कर उभरे.

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